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गांव में रहने वालों की पहचान है लाठी, ये हत्या का हथियार नहीं हो सकती: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा है कि लाठी गांव में रहने वाले की पहचान है. इसे हत्या का हथियार नहीं कह सकते. यह टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हत्या (धारा 302) के एक मामले को गैर इरादतन हत्या (धारा 304 भाग दो) में बदला. इसके साथ ही अदालत ने आरोपी के जेल में रहने की अवधि को सजा मानते हुए उसे रिहा करने का आदेश भी दिया.

छत्तीसगढ़ के एक मामले की सुनवाई करते हुए गुरुवार को जस्टिस आरएफ नरीमन की अगुवाई वाली बेंच ने अपने आदेश में कहा कि गांव के लोग लाठी लेकर चलते हैं जो उनकी पहचान बन गई है. यह फैक्ट है कि लाठी को हमले के हथियार की तरह इस्तेमाल में लाया जा सकता है, लेकिन इसे सामान्य तौर पर हमला करने या हमले का हथियार नहीं स्वीकार किया जा सकता है.

अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में लाठी से सिर पर वार किया गया, लेकिन हमेशा यह सवाल बना रहेगा कि क्या यह हमला हत्या के इरादे से किया गया था? क्या उसे इस बात की जानकारी थी कि इस हमले से किसी की जान जा सकती है!

गुस्से में किया गया वार

कोर्ट कहा कि मामले से जुड़े फैक्ट्स, हमले की प्रकृति और उसका तरीका, वार और घावों की संख्या इत्यादि को देखकर ही किसी के इरादे के बारे में कुछ तय किया जा सकता है. इस मामले में आरोपी जुगत राम ने व्यक्ति के सिर पर लाठी से हमला किया जो उस वक्त उसके हाथ में थी. दोनों के बीच भूमि विवाद का मामला चल रहा था. हमले की वजह से पीड़ित की दो दिन बाद अस्पताल में मौत हो गई.

इसके बाद साल 2004 में आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. पुलिस ने मामले को धारा 302 में बदला और फिर सेशन कोर्ट ने जुगत राम को उम्रकैद की सजा दी. हाईकोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा. हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि यह हत्या पहले से योजना बना कर नहीं की गई थी बल्कि गुस्से में हो गई थी, हालांकि अदालत ने धारा 302 के तहत सजा बरकरार रखी थी जिसके बाद इस फैसले को आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.