दिल्ली हाईकोर्ट ने एक याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 के तहत सजायोग्य अपराध के लिए दर्ज प्राथमिकी और उसके परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले सभी अन्य मामलों को पिछले सप्ताह उस वक्त निरस्त कर दिया जब उसके संज्ञान में यह बात आयी कि महिला ने याचिकाकर्ता के साथ कहासुनी के बाद प्राथमिकी दर्ज करायी थी।
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की एकल पीठ ने यह भी कहा कि झूठे आरोप के लिए महिला मुकदमा झेलने का हकदार है, लेकिन उसने बिना शर्त माफी मांगी है कि यदि उसके खिलाफ ट्रायल शुरू किया गया तो उसका वैवाहिक जीवन तबाह हो जायेगा। इसके साथ ही बेंच ने महिला का बिना शर्त माफीनामा स्वीकार कर लिया।
कोर्ट के समक्ष मामला
याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर करके अपने खिलाफ नयी दिल्ली के कापसेहड़ा पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 376 के अंतर्गत सजायोग्य अपराध के लिए दर्ज की गयी प्राथमिकी (FIR No. 381 / 2020) और उसके परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले अन्य मामलों को निरस्त करने के निर्देश देने की मांग की थी।
याचिका इस आधार पर दायर की गयी थी कि याचिकाकर्ता और दुष्कर्म की शिकायत करने वाली महिला के बीच समझौता हो चुका है।
आरोप लगाने वाली महिला ने कहा कि उसकी याचिकाकर्ता के साथ कहासुनी हो गयी थी, उसके बाद उसने संबंधित प्राथमिकी दर्ज करायी थी। इस संदर्भ में महिला ने न केवल हलफनामा दायर किया, बल्कि उसने कोर्ट से माफी भी मांगी।
उल्लेखनीय है कि कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा है कि याचिकाकर्ता सुशिक्षित व्यक्ति है। उसके पास एमबीए और सीएस - एक्ज़क्यूटिव सहित कई शैक्षणिक डिग्रियां हैं और अभी वह सीएस - प्रोफेशनल्स और यूपीएससी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है।
कोर्ट का आदेश -
बेंच ने कहा कि 'प्रभात भाई अहीर एवं अन्य बनाम गुजरात सरकार एवं अन्य (एआईआर 2017 एससी 4843)' मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार बलात्कार के मामले में प्राथमिकी निरस्त नहीं की जा सकती, क्योंकि 'यह घिनौना अपराध' है।
हालांकि, बेंच ने आगे कहा,
"लेकिन जब प्रतिवादी संख्या 2 (शिकायतकर्ता / अभियोग लगाने वाली महिला ) ने खुद ही पहल की है और इस कोर्ट के समक्ष हलफनामा दिया है कि उसने कुछ गलतफहमियों के कारण शिकायत की थी और अब उन गलतफहमियों को वह छोड़ना चाहती है, जो याचिकाकर्ता और प्रतिवादी संख्या 2 के बीच हुई थी, तो ऐसे में मेरा मानना है कि ऐसे मामलों में ट्रायल जारी रखने से कोई उद्देश्य हल नहीं होगा।"
दोनों पक्षों के बीच समझौता हो जाने को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने प्राथमिकी निरस्त कर दी तथा कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आगे मुकदमा चलाने से किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी।"
कोर्ट ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि,
"मुकदमे को जारी रखने से परीक्षा क्लियर करने में उसकी (याचिकाकर्ता की) संभावना प्रभावित होगी।"
गौरतलब है कि हाल ही में, केरल हाईकोर्ट ने एक कोविड निगेटिव सर्टिफिकेट हासिल करने आयी एक महिला के साथ बलात्कार के आरोपी स्वास्थ्यकर्मी को जमानत मंजूर करते हुए पुलिस महानिदेशक को उस पीड़िता के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया था, जिसने बयान दिया था कि उसने सहमति से यौन संबंध बनाये थे।
कोर्ट स्वास्थ्यकर्मी द्वारा दाखिल तीसरी जमानत याचिका का निपटारा कर रहा था। पहले की दो जमानत याचिकाओं को कोर्ट ने खारिज कर दिया था और स्वास्थ्यकर्मी करीब 77 दिनों से जेल में बंद था।
केस का नाम : ललित कुमार वत्स बनाम दिल्ली सरकार एवं अन्य [क्रिमिनल एम. सी. 2384 / 2020]