सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में मॉरटोरीअम की अवधि को 31 दिसंबर, 2020 तक बढ़ाने के लिए सभी बैंकों को निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि वकालत, सेवा क्षेत्र, ट्रान्सपोर्ट और टूरिज्म के काम कर रहे लोगों की खराब वित्तीय स्थिति के मद्देनजर यह आवश्यक है।
एडवोकेट विशाल तिवारी द्वारा दायर याचिका में बैंकों को दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की गई है ताकि कर्जदारों को ईएमआई भुगतान से राहत मिल सके, और जब तक अदालत फिर से शुरू न हो जाए मॉरटोरीअम का पालन करने के लिए बैंकों को कहा जाए।
तिवारी ने याचिका में कानूनी पेशेवरों समेत विभिन्न पेशों में शामिल लोगों की दुर्दशा और महामारी के कारण उनकी आमदनी में आई कमी की चर्चा की है।
याचिका में कहा गया है,
"लॉकडाउन के कारण ऋण की किस्तों का भुगतान करना संघर्ष का मुद्दा बन गया है क्योंकि अदालतों में प्रत्यक्ष सुनवाई बंद होने के कारण कानूनी पेशेवरों की कोई निरंतर और सुरक्षित आय नहीं बची है।"
..... देश के विभिन्न न्यायालयों में प्रत्यक्ष सुनवाई पर 31 अगस्त 2020 तक की रोक के कारण विभिन्न कानूनी पेशेवरों को आर्थिक समस्याओं को सामना करना पड़ रहा है, जिनकी एक महत्वपूर्ण संख्या है, इसलिए, अगर 31 अगस्त 2020 के बाद, बैंक द्वारा किस्तों की मांग की जाती है, तो उन लोगों को कठिनाई होगी] जिनके पास कोई आय नहीं है और यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आजीविका और सम्मान के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।"
याचिकाकर्ता ने यह सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार, गृह मंत्रालय ओर रिज़र्व बैंक को निर्देश देने का आग्रह किया हे कि ऋण संस्थाएं ऋण किस्तों की वसूली के लिए उधारकर्ताओं के खिलाफ किसी भी प्रकार अवैध, हिंसक, धमकी देने और परेशान करने वाले तरीकों का उपयोग नहीं करेंगी और ऐसा किया जाता है तो कानून के अनुसार उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की होगी।
वित्तीय कठिनाइयों के कारण, लोग मासिक ऋण की किस्तों का भुगतान करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि उधारकर्ताओं और कानूनी पेशेवरों की सुप्रीम कोर्ट सहित देश के विभिन्न न्यायालयों में प्रत्यक्ष सुनवाई बंद होने के कारण है आय कम हो गई है या शून्य हो गई है।
"वर्तमान समय में जब अदालतों का कामकाज सीमित सीमित है...पेशेवरों/ वकीलों के लिए मासिक खर्च के लिए पैसा कमाना बहुत मुश्किल है।"
उल्लेखनीय है कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने 27 मार्च को जारी एक अधिसूचना में, तीन महीने की अवधि के लिए मासिक ऋण किस्त के निलंबन का आदेश दिया था। फिर 23 मई को, 31 अगस्त तक के लिए निलंबन का विस्तार किया गया।
उल्लेखनीय है कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने 27 मार्च को जारी एक अधिसूचना में, तीन महीने की अवधि के लिए मासिक ऋण किस्त के निलंबन का आदेश दिया था। फिर 23 मई को, 31 अगस्त तक के लिए निलंबन का विस्तार किया गया।
हालांकि, 31 अगस्त, 2020 तक लॉकडाउन अधिसूचना के अनुसार अदालत को बंद रहने और प्रत्यक्ष सुनवाई पर रोक के कारण कई लोगों के लिए आर्थिक रूप से बहुत मुश्किल हो रही है।
याचिका में कहा गया है कि भले ही कुछ कानूनी पेशेवर ऑडी और बीएमडब्ल्यू में घूमते हैं, वे स्थापित हैं, लेकिन यह ऐसे लोग कानूनी बिरादरी में बहुत कम है, खासकर निचली अदालतों में जो केस दर केस काम करते हैं। तिवारी ने कहा है, "जब अदालतें काम नहीं करती हैं, तो उनकी आर्थिक स्थिति अनिश्चित हो जाती है।"
याचिकाकर्ता ने कहा है कि महामारी के कारण यात्रा, परिवहन और आतिथ्य उद्योग में भी कठिनाइया आई हैं। उन्होंने कहा, "सभी क्षेत्रों में ठहराव पर आ गया है, जिसके कारण या तो कर्मचारियों को निकाला जा रहा है या अवकाश पर भेज दिया गया है। यहां तक कि वेतन में 40 से 60 प्रतिशत तक की कमी कर दी गई है।"